बिहार की सियासत: नीतीश की कसौटी, तेजस्वी की परीक्षा

- Reporter 12
- 09 Mar, 2025
मोहम्मद आलम
बीस साल का सुशासन सवालों के घेरे में, विपक्ष के वादों पर भी भरोसा अधूरा
बिहार विधानसभा चुनाव का माहौल गरमा चुका है। सत्ता पक्ष से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता से सुशासन और विकास का हिसाब मांग रहे हैं, तो विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार को हथियार बनाकर सरकार पर सीधा हमला बोल रहे हैं। लेकिन जनता की जुबान अब बदल गई है—"वादे बहुत हो गए, इस बार काम और ईमान देखेंगे।"
नीतीश पर सुशासन का सवाल
करीब दो दशक से सत्ता की कमान संभाल रहे नीतीश कुमार का चेहरा इस बार पहले की तरह चमकदार नहीं दिख रहा।गांव-गांव में चर्चा है।"सड़क टूटी है,अस्पताल में दवा नहीं, स्कूल में मास्टर नहीं, यही है सुशासन?"जनता साफ कह रही है कि नीतीश जी का राज लंबा रहा, लेकिन आम लोगों की ज़िंदगी में उम्मीद के मुताबिक बदलाव नहीं आया।
तेजस्वी की अग्निपरीक्षा
विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव हर सभा में 10 लाख नौकरी देने का वादा दोहरा रहे हैं। युवाओं की भीड़ उनके मंच पर जुट रही है।लेकिन जनता का तंज है।जंगलराज की यादें अब भी ताज़ा हैं,भरोसा करने से पहले सबूत चाहिए।"तेजस्वी को जनता से भरोसा तो मिल रहा है, लेकिन यह भरोसा परीक्षा की घड़ी से गुजरना बाकी है।
छोटे दलों का बिगाड़ू समीकरण
इस चुनाव में छोटे दलों की मौजूदगी भी बड़े दलों के लिए सिरदर्द बनी हुई है।चिराग पासवान नीतीश पर सीधा हमला बोलते हैं, लेकिन जनता मानती है।चिराग का दीया कब किसके आंगन में जल उठे, कुछ कहा नहीं जा सकता।असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम वोटों पर निगाह गड़ाए हैं। विपक्ष का आरोप है कि उनकी मौजूदगी से बीजेपी को सीधा फायदा होता है।उपेंद्र कुशवाहा जातीय समीकरण और गठबंधन की राजनीति से खुद को "किंगमेकर" साबित करने की कोशिश में जुटे हैं।छोटे दल भले सत्ता न बना पाएं, लेकिन सत्ता की चाबी ज़रूर अपने हाथ में रखने का दम भरते हैं।अब प्रशांत किशोर (PK) अपने जनसुराज अभियान के साथ सीधे जनता से संवाद कर रहे हैं।पीके का अंदाज़ अलग है।वे गांव-गांव पदयात्रा कर रहे हैं और कह रहे हैं।बिहार को नेताओं ने लूटा है, अब जनता खुद सत्ता तय करेगी।उनकी एंट्री ने चुनावी मैदान को और पेचीदा बना दिया है।
जाने क्या है जनता की राय
1.नेता चुनाव में वादा करते हैं,जीतने के बाद चार साल गायब रहते हैं।
2.जात-पात की राजनीति बहुत हो गई, अब रोज़गार और इलाज चाहिए।"
3.अबकी बार न जुमला चाहिए, न बहाना… सिर्फ काम और ईमान चाहिए। बताते चलें कि यह चुनाव सिर्फ सत्ता और विपक्ष की लड़ाई नहीं है।यह नीतीश कुमार की कसौटी है, तेजस्वी यादव की परीक्षा है और छोटे दलों की चालाकी का भी इम्तिहान है।सबसे अहम, यह बिहार की जनता की सहनशीलता और नेताओं की नीयत का सच उजागर करेगा।अब देखना होगा कि बिहार फिर पुराने ढर्रे पर चलता है या इस बार सचमुच बदलाव की नई इबारत लिखता है।
Leave a Reply
Your email address will not be published. Required fields are marked *